बंगलादेश में स्थिति सामान्य हो, भारत को हर संभव सहायता के लिए तैयार रहना चाहिए।:-Sanjeev Mahto (AJSU Party)
बंगला देश में सैनिक शासन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने स्तिफा देकर भारत में लिया शरण।
प्रदर्शन, हिंसा और प्रधानमंत्री के बयान से बिगड़े हालात।
आइए पहले जानते हैं कि बांग्लादेश में कब क्या हुआ?
बांग्लादेश में हिंसक आरक्षण आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़ दिया है।
रविवार को पन: भड़की हिंसा के चलते करीब 100 लोगों की जान चली गई है। जून के अंत में शुरू हुआ आंदोलन सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ था। विरोध के बीच जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने देश में अधिकतर आरक्षण को खत्म कर दिया था लेकिन देश की स्थिति बेकाबू होती गई और प्रधानमंत्री को स्तिफा देकर देश छोड़ना पड़ा।
आइये जानते हैं कि बांग्लादेश में आरक्षण आंदोलन में कब क्या हुआ?
14 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब प्रधानमंत्री से छात्र विरोध प्रदर्शन के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘यदि स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटा नहीं मिलता है, तो किसे मिलेगा? रजाकारों के पोते-पोतियों को?’ दरअसल, बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।
15 जुलाई ढाका विश्वविद्यालय में आंदोलित छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। आंदोलन कर रहे छात्र सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण का विरोध कर रहे थे। इस घटना में दोनों पक्षों के 300 से ज्यादा लोग घायल हुए।दरअसल, मामले ने तब और तूल पकड़ा जब प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम के चलते छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया। शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को ‘रजाकार’ की संज्ञा दी।
16 जुलाई को ढाका, चटगांव और रंगपुर में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शनकारी छात्रों और सुरक्षा बलों के बीच हुई भीषण झड़पों में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई। सभी विश्वविद्यालय, कॉलेज और माध्यमिक विद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिए गए। छात्रों ने विश्वविद्यालय के हॉलों पर कब्जा कर लिया और बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के नेताओं के कमरों में तोड़फोड़ की।
17 जुलाई को बड़े विश्विद्यालयों के मारे गए छात्रों अंतिम संस्कार के दौरान छात्रों पर हमला हुआ। आरोप पुलिस पर लगा। छात्रों ने अगले दिन के लिए राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा की। तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने राष्ट्र को संबोधित किया और पिछले दिन की हत्याओं की न्यायिक जांच की घोषणा की।
18 जुलाई को ब्रैक यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों में छात्रों पर हमला हुआ। एक बार फिर इसका आरोप पुलिस और बीसीएल के लोगों पर लगा। 19 जिलों में हुई झड़पों में दिनभर हुई हिंसक वारदातों के चलते कम से कम 29 लोगों की मौत हो गई। आंदोलनकारियों ने कई सरकारी प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी। पूरे देश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई, मेट्रो रेल परिचालन अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
19 जुलाई को आधी रात से सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू की घोषणा की और दिन भर चली हिंसा में कम से कम 66 लोगों की मौत के बाद सेना तैनात कर दी गई। कई सरकारी प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना घटी।
20 जुलाई को सेना की तैनाती के बीच कर्फ्यू के पहले दिन कम से कम 21 लोगों की मौत हो गई। कर्फ्यू को अगले आदेश तक बढ़ा दिया गया और दो दिन की सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा की गई। आरक्षण आंदोलन के मुख्य आयोजक को गिरफ्तार कर लिया गया और देश की मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कई नेताओं को हिरासत में लिया गया।
21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 56 फीसदी से घटाकर सात प्रतिशत कर दिया। इसमें पांच फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए थे। जिसका आंदोलनकारी विरोध कर रहे थे। तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने हसीना से मुलाकात की। वहीं संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने हिंसा पर चिंता जताई।
22 जुलाई को पिछले दिनों हुई झड़पों में घायल हुए छह और लोगों की मौत हो गई। इससे मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 146 पहुंच गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने विपक्षी दलों बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। सेना प्रमुख ने सामान्य स्थिति की वापसी की उम्मीद जताई। बीएनपी और जमात नेताओं की गिरफ्तारी लगातार हो रही थी ।
23 जुलाई को सरकार ने आरक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए परिपत्र जारी किया। हालांकि, आंदोलन से जुड़े चार आयोजकों ने इसे अस्वीकार कर दिया। कर्फ्यू के बीच विपक्षी नेताओं और प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारियां और छापे जोर शोर से जारी थे। चुनिंदा क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट बहाल कर दिया गया था।
24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विरोध प्रदर्शनों में कमी आई। काफी हद तक स्थिति सामान्य होने लगी। अंतर-जिला बस सेवाएं आंशिक रूप से दोबारा शुरू की गईं। आंदोलन धीमा रहा।
25 जुलाई को दर्जनों विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यूएन, एमनेस्टी इंटरनेशनल, अमेरिका, कनाडा ने ‘दमनकारी नीतियों’ को समाप्त करने का आह्वान किया। सेना की तैनाती के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आईं और क्षतिग्रस्त मेट्रो रेल स्टेशन आदि पब्लिक सेवा का दौरा कर जायजा लिया।
26 जुलाई को पुलिस की खुफिया शाखा ने तीन आयोजकों को हिरासत में ले लिया। विपक्षी दल बीएनपी ने सरकार हटाने का आह्वान किया। कर्फ्यू की घोषणा के बाद सार्वजनिक रूप से सामने आने के दूसरे दिन शेख हसीना ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल गईं। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने इंटरनेट सेवाओं को पूरी तरह से बहाल करने का आह्वान किया।
27 जुलाई को प्रदर्शनकारियों के यहां छापामारी जारी रहे। उधर दो और आरक्षण आंदोलन के आयोजकों को हिरासत में ले लिया गया। 14 विदेशी मिशन ने सरकार से सुरक्षा बलों को गलत कार्रवाई के लिए जवाबदेह ठहराने का आग्रह किया। शेख हसीना ने अस्पताल का दौरा किया और कहा कि अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए हिंसा की गई है।
28 जुलाई को देश भर में कार्रवाई जारी रही, अकेले ढाका शहर में 200 से ज्यादा मामलों में 2.13 लाख से ज्यादा लोगों को अभियुक्त बनाया गया। मोबाइल इंटरनेट बहाल कर दिया गया, लेकिन सोशल मीडिया पर प्रतिबंध जारी रहा। हिरासत में लिए गए छह आयोजकों ने आंदोलन वापस लेने की बात कही गई। आयोजकों ने यह बयान ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस (डीएमपी) की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) के प्रमुख हारुनोर रशीद के दफ्तर से जारी किया। बाहर, प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग ने आंदोलन को जारी रखने की घोषणा की। सरकार द्वारा पहली बार मृतकों की संख्या 147 बताई गई।
29 जुलाई को कुछ जिलों में प्रदर्शनकारी फिर सड़कों पर उतरे, पुलिस ने उन्हें रोका और दर्जनों लोग हिरासत में लिए गए। सरकार ने कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी घोषणा की। हाईकोर्ट ने छह प्रदर्शनकारियों के साथ हुए व्यवहार को लेकर ढाका पुलिस को कड़ी फटकार लगाई।
30 जुलाई को प्रमुख विश्विद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों ने मौन जुलूस निकाला, अभिभावकों ने बच्चों की मौत का विरोध किया, पुलिस ने उन्हें रोका। शेख हसीना ने कहा कि सरकार न्यायिक जांच के लिए विदेशी मदद लेगी और अगले दिन राष्ट्रव्यापी शोक की घोषणा की गई। आंदोलन के विरुद्ध पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी रही।
31 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने सरकार के राष्ट्रव्यापी शोक के फैसले को ठुकरा दिया, राजधानी ढाका और अन्य स्थानों पर प्रदर्शन किया। सैकड़ों स्कूली छात्रों ने साथी परीक्षार्थियों को पुलिस हिरासत/जेल से रिहा न किए जाने पर परीक्षाओं का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी।
1 अगस्त को आतंकवाद विरोधी अधिनियम के तहत जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस बारे में सरकार ने एक राजपत्र जारी किया। संयुक्त राष्ट्र ने फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजने की पेशकश की, प्रधानमंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र हिंसा की जांच करने के लिए स्वतंत्र है। छह आंदोलन आयोजकों को पुलिस की हिरासत से छोड़ दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने मारे गए लोगों के लिए सामूहिक जुलूस निकाले। पांच प्रमुख सरकारी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और छात्रों ने जोरदार प्रदर्शन किया।
2 अगस्त को प्रदर्शनकारियों ने हत्याओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखा, हजारों लोग ‘न्याय मार्च’ में शामिल हुए। राजधानी और अन्य जगहों पर प्रदर्शनकारियों और आवामी लीग के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झपड़ें हुईं, जिसमें दो और लोग मारे गए। प्रदर्शनकारियों ने अगले दिन देशव्यापी प्रदर्शन और रविवार से असहयोग आंदोलन की घोषणा की। फेसबुक को फिर से सात घंटे के लिए ब्लॉक किया गया।
3 अगस्त को विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे गए छात्रों और अन्य लोगों के लिए न्याय की मांग को लेकर बांग्लादेश की राजधानी में हजारों लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि, देश के अन्य स्थानों पर इसी तरह के प्रदर्शनों में हिंसा की खबरें आईं। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री की स्तिफा का मांग के साथ सरकार विरोधी नारे लगाये । कुछ सरकार समर्थक समूहों भी शहर में रैली निकाली। देश के पूर्वी हिस्से में कुमिला में हिंसा के दौरान लगभग 30 की संख्या में प्रदर्शनकारी घायल हुए।
4 अगस्त को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन एक बार फिर उग्र हो गया। देश भर में हुई हिंसा में करीब 100 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। पुलिस ने हजारों प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं, जिसके चलते ये मौतें हुईं। इसमें कम से कम 14 पुलिसकर्मी भी शामिल थे। कुछ जगहों पर सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच झड़प भी हुईं। कुछ जगहों पर अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौत भी हुई। इस तरह से इस हिंसक आंदोलन के चलते 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हिंसा को रोकने के लिए देश में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई, देश में कर्फ्यू लगा दिया गया। सरकार ने तीन दिन की सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी। इन सब के बावजूद हालात बिगड़ते गये काबू में नहीं आ सके।
5 अगस्त को नए सिरे से जारी हिंसा में नया मोड़ आया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद शेख हसीना देश छोड़कर चली गईं। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया। देश के हालात पर सेना प्रमुख ने बयान जारी किया। सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों से संयम बरतने की अपील की और कहा कि देश में जल्द ही अंतरिम सरकार का गठन किया जायेगा।
आरक्षण प्रणाली के तहत क्या है प्रावधान?
बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के तहत कुल 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं. अब इन नौकरियां में से 30 फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों के लिए, 10 फीसदी आरक्षण पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, 5 प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और 1 प्रतिशत दिव्यांग लोगों के लिए आरक्षित है.
हसीना सरकार पर क्या आरोप है?
प्रदर्शनकारी छात्रों का आरोप है कि सरकार उन लोगों को आरक्षण देने के पक्ष में है, जो शेख हसीना सरकार का समर्थन करते हैं और मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं दी जा रही हैं। इसलिए प्रदर्शनकारी इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने और हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। जिस वजह से देश में लगातार हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले।
प्रमुख विपक्षी दल बीएनपी ने कहा ” ये जनता की ताकत, आने वाली पीढ़ियों के लिए बनेगा उदाहरण “। बीएनपी कार्यकारी अध्यक्ष तारीक रहमान ने कहा कि शेख हसीना का इस्तीफा जनता की ताकत को साबित करता है। यह आने वाली पीढ़ियों को दिखाने के लिए एक उदाहरण होगा कि लोगों का साहस अत्याचारों पर कैसे काबू पा सकता है।
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद पूर्व PM खालिदा जिया को राहत, जेल से रिहाई के आदेश जारी कर दिया गया है। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने कहा कि बांग्लादेश की पूर्व PM और बीएनपी अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया को जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा और उनका विदेश में इलाज कराया जाएगा। वहीं ढाका में प्रदर्शनकारियों की ओर से जमकर उत्पात मचाया जा रहा है।
मैंने बंग्लादेश के अपने परिचित दोस्त मित्र सगा संबंध के कई लोगों से शाम को बात किया वो आने वाली सरकार कैसी होगी इसको लेकर चिंतित हैं। हमलोग के झारखंडी मुल के भी काफि लोग जो कि देश बंटवारा में बंगलादेश में रह गये वो बंगलादेश की स्थिति पर काफ़ी चिंतित हैं। उन सबके लिए चिंता जाहिर करते हुए उनके बेहतरी की प्रार्थना करता हूं और आदरणीय AJSU Party (आजसू पार्टी) अध्यक्ष श्री Sudesh Mahto जी से एवं आदरणीय गिरीडीह सांसद #chandraprakashchaudhary जी और देश के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी से आग्रह करता हूं कि इस विषम परिस्थिति में बंगलादेश को हर संभव सहायता करें। देश बंटवारा राजनीतिक कारणों से हुआ है लेकिन वहां पर भी रहने वाले एक समय हमलोग के देश वासी थे और वे हमलोग के अपने हैं। एक बेहतर पड़ोसी देश के हर कर्तव्य का निर्वाहन हमें करना चाहिए।