राज्यपाल द्वारा शहीद चानकू महतो के मूर्ति का अनावरण आये जानते है कौन थे शहीद चानकू महतो
झारखण्ड के राज्यपाल संतोष गंगवार ने आज पूर्वी सिंहभूम में स्वतंत्रता सेनानी चानकू महतो की प्रतिमा का अनावरण किया | इस अवसर पर उन्होंने हुल क्रांति में चानकू महतो के योगदान को याद किया और प्रेरणास्रोत बताया |

पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड के अंतर्गत भालुकबिंधा गांव में राज्यपाल संतोष गंगवार ने आज स्वतंत्रता सेनानी चानकू महतो की प्रतिमा का अनावरण किया इस अवसर पर राज्यपाल ने चानकू महतो के साहस,बलिदान और जनचेतना को नमन करते हुए कहा कि यह प्रतिमा मात्र एक मूर्ति नहीं बल्कि इतिहास की जीवंत स्मृति है, जो देशभक्ति की प्रेरणा देती रहेगी।
रंगमटिया में मनाया गया शहीद चानकू महतो के 169वॉ शहादत दिवस

गोड्डा जिला के रंगमटिया चौक में स्थापित वीर शहीद चानकू महतो प्रतिमा पर माला पहनाकर ग्रामीण युवाओं ने वीर शहीद चानकू महतो के 169वॉ शहादत दिवस मनाया | साथ ही झारखण्ड के तमाम वीर शहीदों को भी याद कर नमन किया और उन सभी वीर शहीदों के नारे के साथ जय जय कार किया गया | मोके पर उपस्थित दिनेश कुमार महतो ( जिला अध्यक्ष कुड़मी विकास मोर्चा गोड्डा ), दयानन्द भारती, किशोर महतो, मिथुन कुमार महतो, दिपक महतो, रमेश कुमार महतो, सोनू कुमार महतो, कुंदन कुमार महतो , सोमू कुमार, गौतम कुमार, संदीप कुमार, रंजीत महतो , अनुज कुमार महतो और ग्रामीण के लोग उपस्थित रहे |
कौन थे चानकू महतो
चानकू महतो प्राचीन राड़ प्रदेश सभ्यता का एक गुमनाम राष्ट्रभक्त हैं। राड़ प्रदेश, वृहद बंगाल के चार भूभाग में से एक है। जंगल तराई यानी वर्तमान झारखंड के संताल परगना प्रमंडल के गोड्डा जिले के रंगमटिया गांव में 9 फरवरी, 1816 को जन्मे चानकू महतो बचपन से साहसी और प्रतिभा वाले थे। पिता का नाम कारु महतो और उनकी माता का नाम बड़की महताइन था | नाना धनीराम महतो के बहुत लाडले होने की वजह से इनकी शिक्षा-दीक्षा नाना के पास बाड़ेडीह गांव में ही हुई। बीमारी से मां की असमय मृत्यु हो गई, तब चानकू अपने घर रंगमटिया में रहकर पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगे। अपने हुनर और प्रतिभा के कारण गांव का प्रधान बने और फिर कुड़मि स्वशासन व्यवस्था के परगना के परगनैत भी बने |
गद्दार प्रताप नारायण ने दी सूचना
सन् 1855 के अक्टूबर महीने में सोनार चक में जनसभा थी। उसमें चानकू शामिल हुए और लोगों को संबोधित कर रहे थे कि एक गद्दार नायब प्रताप नारायण ने अंग्रेजी सरकार को उनकी उपस्थिति की सूचना दे दी। अंग्रेजी सेना ने तेजी से कार्रवाई करते हुए चानकू महतो को चारों तरफ से घेर लिया और युद्ध शुरू हो गया। लेकिन उनके साथी उन्हें सुरक्षित स्थान पर लेकर चले गए। अब पुलिस का गुस्सा सातवें आसमान पर था। पुलिस को किसी ने सूचित कर दिया कि चानकू महतो अपने ननिहाल बाड़ेडीह गांव में हैं। पुलिस यहां चुपके से पहुंची और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेजी सेना इतने गुस्से में थी कि 1856 में बाड़ेडीह महतो टोले को पूरी तरह उजाड़ दिया।
चानकू महतो संथाल विद्रोह के एक नायक और स्वतंत्रता सेनानी थे
आपने इतिहास में संथाल विद्रोह का नाम सुना होगा । चानकू महतो ने सिदो- कान्हो के नेतृत्व को मानते हुए अपने को संथाल विद्रोह के साथ जोड़ा और जगह-जगह सभा आयोजन कर अंग्रेज शासकों को ललकारने लगा। 30 जून 1855 को सिदो- कान्हो ने भोगनाडीह की सभा में अंग्रेजों और महाजनों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की थी, उस दिन चानकू महतो भी वहां उपस्थित थे । चानकू महतो संथाल विद्रोह के एक नायक और स्वतंत्रता सेनानी थे। 15 मई 1856 को गोड्डा के राज कचहरी स्थित कझिया नदी किनारे अंग्रेजों ने उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दिया था। चानकू महतो एक प्रमुख शहीद का नाम सरकारी दस्तावेज में उपलब्ध है ।